यूं ही नहीं कहते कि सेवा करने से मेवा मिलता है

रिपोर्ट: साभारःश्री श्री रविशंकर गुरुवार, अध्यात्मिक गुरु

अपने भीतर भगवान को देखना ध्यान है और आपके बाजू के व्यक्ति में भगवान को देखना सेवा है। अक्सर लोगों में भय होता है कि दूसरे लोग उनका शोषण करेंगे यदि वह सेवा करेंगे। जबकि सच यह है कि सेवा से योग्यता आती है और ध्यान के गहन में जाने में सहायता मिलती है और ध्यान से आपकी मुस्कुराहट वापस आ जाती है। सेवा और आध्यात्मिक अभ्यास साथ में चलते हैं। जितना आप ध्यान के गहन में जाएंगे उतनी ही दूसरों के साथ बांटने की इच्छा में वृद्धि होगी। जितनी आप दूसरों की सेवा करेंगे उतने ही गुण आप प्राप्त करेंगें। कई लोग सेवा इसलिये करते हैं क्योंकि उससे उन्हें लाभ प्राप्त होता है। जब लोग खुश होते हैं तो उन्हें लगता है कि अतीत में निश्चित ही उन्होंने सेवा की होगी। इसके विपरीत यदि आप खुश नहीं हैं तो फिर सेवा करें इससे आपकी चेतना का विस्तार होगा और आप खुशी का अनुभव करेंगें। जितना आप बांटेंगे उतनी ही शक्ति और प्रचुरता की बौछार आप पर होगी। यह बैंक में जमा पूंजी को बढ़ाने के समान है। जितना आप अपने आपसे खुल जाते हैं उनता ही आप भगवान को अपने में प्रवेश करने का स्थान प्रदान करते हैं। जब आप सेवा को अपने जीवन की सबसे बड़ी प्राथमिकता बना लेते है तो फिर भय समाप्त हो जाता है। मन और अधिक केंद्रित हो जाता है। कृत्य को उद्देश्य मिलने लगता है और दीर्घकालीन आनंद की प्राप्ति होती है। जब आप सेवा करते हैं तब आप में स्वाभाविकता और मानवीय मूल्य निखरने लगता हैं और आपको भय और उदास मुक्त समाज निर्मित करने में सहायता प्राप्त होती है। युवाओं के लिये आध्यात्म उनकी बांटने की क्षमता में निखार लाता है और उनके आत्मविश्वास को बढ़ाता है। यदि आपकी दूसरों की मदद और सेवा करने की इच्छा है तो आपको चिंता करने की जरूरत नहीं क्योंकि दिव्यता आपका अच्छे से ध्यान रखेगी। पैसों की बहुत चिंता न करें। प्रेम और आभार से परिपूर्ण रहें। प्रेम में रहकर अपने भीतर के भय से निकलें। उदासी का सबसे बड़ा और प्रभावी प्रतिकारक सेवा होती है। जिस दिन भी आप निराशाजनक और मंद महसूस कर रहे हों उस दिन अपने घर से निकलें और लोगों से पूछें, \'मैं आपके लिये क्या कर सकता हूँ।\' जो आप सेवा करेंगे उससे आपका जीवन के प्रति दृष्टिकोण बदलेगा और आपके भीतर एक आनंद की लहर आएगी क्योंकि आपने किसी के जीवन को मुस्कुराने का मौका दिया है। जब आप प्रश्न करते है, \' मैं ही क्यों\' या \'मेरे बारे में क्या\' इससे आपको उदासी और निराशा मिलेगी। इसके आलावा कुछ श्वास अभ्यास जैसे सुदर्शन क्रिया करें और प्रतिदिन कुछ मिनटों के लिये मौन धारण करें। इससे आपके मन और शरीर को ऊर्जा मिलेगी और शक्ति में वृद्धि होगी। दो किस्म के आनंद होते हैं। पहला आनंद पाने का होता है। जैसे एक बालक कहता है, \'यदि मुझे कुछ मिलेगा, तो मैं खुश हो जाऊंगा। यदि मुझे खिलौना मिलेगा तो मैं खुश हो जाऊंगा।\' आप अधिकांश समय इसी में फंसे रहते हैं और इससे परे नहीं जाना चाहते। वास्तविक आनंद भीतर से आता है और वह सिर्फ बांटने में है।


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