तीन तलाक जायज नहीं, 6 महीने की रोक; सरकार इस पर कानून बनाए: SC

रिपोर्ट: ramesh pandey

नई दिल्ली.तीन तलाक पर 18 महीने बाद सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुना दिया। एक हजार साल पुरानी इस प्रथा पर 5 जजों की बेंच ने 3:2 की मेजॉरिटी से फैसला दिया। इसमें कहा गया कि तीन तलाक वॉइड (शून्य), अनकॉन्स्टिट्यूशनल (असंवैधानिक) और इलीगल (गैरकानूनी) है। बेंच में शामिल दो जजों ने तीन तलाक पर 6 महीने की रोक लगा दी। कोर्ट ने कहा कि तीन तलाक कुरान के मूल सिद्धांतों का हिस्सा नहीं है और सरकार से इस पर कानून बनाने को कहा। बता दें कि सुप्रीम कोर्ट को ये तय करना था कि तीन तलाक महिलाओं के संवैधानिक अधिकारों का हनन करता है या नहीं? यह कानूनी रूप से जायज है या नहीं और तीन तलाक इस्लाम का मूल हिस्सा है या नहीं? मई में इस मामले में छह दिन सुनवाई हुई थी। इसके बाद मंगलवार को फैसला आया। अब मामला मोदी सरकार के पाले में है। उसे आम राय कायम कर तीन तलाक पर कानून बनाना होगा। Q&A में समझें पूरा मामला... क्या हैं इस फैसले के मायने? - चीफ जस्टिस ने सरकार से 6 महीने में कानून बनाने को कहा। इसके ये मायने हैं कि अगले छह महीने तक मुस्लिम पुरुष महिलाओं को एक साथ तीन तलाक कहकर उन्हें अलग नहीं कर सकेंगे। - वहीं बेंच ने अपने फैसले में कहा कि जब कई इस्लामिक देशों में तीन तलाक की प्रथा खत्म हो चुकी है तो आजाद भारत इससे निजात क्यों नहीं पा सकता? क्या बेंच की एक राय थी? - यह बेंच पांच जजों की थी। चीफ जस्टिस जेएस खेहर और जस्टिस अब्दुल नजीर इस पक्ष में नहीं थे कि तीन तलाक को असंवैधानिक करार दिया जाए। वहीं, जस्टिस आरएफ नरीमन, जस्टिस यूयू ललित और जस्टिस कुरियन जोसेफ ने तीन तलाक को असंवैधानिक करार दिया। - तीन तलाक की विक्टिम और पिटीशनर अतिया साबरी के वकील राजेश पाठक ने DainikBhaskar.com को बताया कि बेंच ने 3:2 की मेजॉरिटी से तीन तलाक को खारिज और गैर-कानूनी करार दिया। वहीं दो जजों ने इस मामले पर संसद में कानून बनाने की बात कही। - वहीं, वकील सैफ महमूद के मुताबिक, चीफ जस्टिस ने कहा कि पर्सनल लॉ से जुड़े मुद्दों को न तो कोई संवैधानिक अदालत छू सकती है और न ही उसकी संवैधानिकता को वह जांच-परख सकती है। वहीं, जस्टिस नरीमन ने कहा कि तीन तलाक 1934 के कानून का हिस्सा है। उसकी संवैधानिकता को जांचा जा सकता है। तीन तलाक असंवैधानिक है। - चीफ जस्टिस खेहर और जस्टिस अब्दुल नजीर ने तीन तलाक पर 6 महीने तक रोक लगाने और सरकार द्वारा कानून बनाने की बात कही। ये भी कहा कि राजनीतिक दलों को इस मामले पर विरोध को दरकिनार करना चाहिए। चीफ जस्टिस और नजीर ने अपने फैसले में ये भी कहा कि उम्मीद है कि केंद्र अपने कानून में मुस्लिम संगठनों की चिंताओं और शरिया कानून का ध्यान रखेगा। - 3 जजों ने कहा कि तीन तलाक की परंपरा मर्जी से चलती दिखाई देती है, ये संविधान का उल्लंघन है। इसे खत्म होना चाहिए। WHAT NEXT: नजरें अब मोदी सरकार पर - चीफ जस्टिस ने सरकार से 6 महीने में कानून बनाने को कहा। साथ ही यह भी अहम कमेंट किया है कि सभी सियासी दल अपने मतभेद एक तरफ रखें और कानून बनाने में सरकार की मदद करें। - उन्होंने उम्मीद जताई कि केंद्र जो कानून बनाएगा, उसमें मुस्लिम संस्थाओं की चिंताओं और शरीयत का ध्यान रखा जाएगा। - सरकार ने पहले ही साफ कर दिया था कि अगर तीन तलाक को गैरकानूनी और असंवैधानिक घोषित कर दिया जाता है तो मुस्लिमों में शादी और तलाक को रेग्युलेट करने के लिए कानून बनाएंगे। - बता दें कि सरकार पहले ही मुस्लमों में तलाक के तीनों रूप- तलाक-ए-बिद्दत, तलाक हसन और तलाक अहसान को गैरकानूनी करार दे चुकी है। अगर 6 महीने में सरकार कानून नहीं बनवा पाई तो क्या होगा? - इसके लिए सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि अगर कानून छह महीने में नहीं बना तो तीन तलाक पर हमारा आदेश जारी रहेगा। - इसके ये मायने हैं कि जो रोक 6 महीने के लिए है, वो कानून नहीं बन पाने की स्थिति में अागे भी जारी रहेगी। क्या है पिटीशनर्स और लॉ एक्सपर्ट्स की राय? 1) शायरा बानो - फरवरी 2016 में उत्तराखंड की रहने वाली शायरा बानो (38) वो पहली महिला बनीं, जिन्होंने ट्रिपल तलाक, बहुविवाह (polygamy) और निकाह हलाला पर बैन लगाने की मांग करते हुए सुप्रीम कोर्ट में पिटीशन दायर की। शायरा को भी उनके पति ने तीन तलाक दिया था। - शायरा ने DainikBhaskar.com को बताया, ''जजमेंट का स्वागत और समर्थन करती हूं। मुस्लिम महिलाओं के लिए बहुत ऐतिहासिक दिन है। कोर्ट ने मुस्लिम समुदाय को बेहतर दिशा दे दी है। अभी लड़ाई खत्म नहीं हुई है। समाज आसानी से इसे स्वीकार नहीं करेगा। अभी लड़ाई बाकी है।'' 2) मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड - मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने कहा- इस मसले पर कानून लाने की जरूरत नहीं है। बोर्ड अपने कानून के हिसाब से चलता है। - इससे पहले बोर्ड ने माना था कि वह सभी काजियों को एडवायजरी जारी करेगा कि वे तीन तलाक पर न सिर्फ महिलाओं की राय लें, बल्कि उसे निकाहनामे में शामिल भी करें। - वहीं, ऑल इंडिया मुस्लिम वुमन्स पर्सनल लॉ बोर्ड की प्रेसिडेंट शाइस्ता अंबर ने तीन तलाक को गैर-कानूनी करार देते सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर खुशी जाहिर की है। 3) लॉ एक्सपर्ट की राय - लॉ एक्सपर्ट संदीप शर्मा ने DainikBhaskar.com को बताया- ''मुस्लिम पर्सनल लॉ में बदलाव की जरूरत है। शायरा बानो ने जो मुद्दा उठाया है, वह अहम है। तीन तलाक के मौजूदा प्रावधान में बदलाव होना ही चाहिए। पाकिस्तान, बांग्लादेश और यूएई जैसे देशों में तीन तलाक कानून बदल चुका है, फिर हमारे यहां क्यों नहीं? कॉमन सिविल कोड बाद की बात है, पहले पर्सनल लॉ में बदलाव तो हो। एक-एक कर बदलाव किए जा सकते हैं।'' - ''पहले हिंदुओं में भी बहुविवाह प्रथा थी। 1956 में कानून में बदलाव कर हिंदू विवाह कानून के तहत एक विवाह का नियम बनाया गया। मुस्लिम पर्सनल लॉ में भी अगर बदलाव की जरूरत है तो होनी चाहिए। महिलाएं चाहें किसी भी धर्म की हों, उन्हें सुरक्षा मुहैया कराना संवैधानिक जिम्मेदारी है। संविधान समानता की बात करता है और अगर पर्सनल लॉ इसमें आड़े आता है तो उसे भी बदला जा सकता है। शादी चाहे किसी भी तरीके से हो, उसके बाद की स्थिति, तलाक और गुजारा भत्ता का मामला एक समान होना चाहिए।'' तलाक-ए-बिद्दत पर सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा? - चीफ जस्टिस जेएस खेहर ने अपने फैसला में कहा कि तलाक-ए-बिद्दत सुन्नी कम्युनिटी का हिस्सा है। यह 1000 साल से कायम है। तलाक-ए-बिद्दत संविधान के आर्टिकल 14, 15, 21 और 25 का वॉयलेशन नहीं करता। क्या है तलाक-ए-बिद्दत? - तलाक-ए-बिद्दत यानी एक ही बार में तीन बार तलाक कह देना। ऐसा तलाकनामा लिखकर किया जा सकता है या फिर फोन से या टेक्स्ट मैसेज के जरिए भी किया जा सकता है। इसके बाद अगर पुरुष को यह लगता है कि उसने जल्दबाजी में ऐसा किया, तब भी तलाक को पलटा नहीं जा सकता। तलाकशुदा जोड़ा फिर हलाला के बाद ही शादी कर सकता है। क्या है तीन तलाक, निकाह हलाला और इद्दत? - ट्रिपल तलाक यानी पति तीन बार ‘तलाक’ लफ्ज बोलकर अपनी पत्नी को छोड़ सकता है। निकाह हलाला यानी पहले शौहर के पास लौटने के लिए अपनाई जाने वाली एक प्रॉसेस। इसके तहत महिला को अपने पहले पति के पास लौटने से पहले किसी और से शादी करनी होती है और उसे तलाक देना होता है। - सेपरेशन के वक्त को इद्दत कहते हैं। बहुविवाह यानी एक से ज्यादा पत्नियां रखना। कई मामले ऐसे भी आए, जिसमें पति ने वॉट्सऐप या मैसेज भेजकर पत्नी को तीन तलाक दे दिया। सुप्रीम कोर्ट में कितनी पिटीशंस दायर हुई थीं? - मुस्लिम महिलाओं की ओर से 7 पिटीशन्स दायर की गई थीं। इनमें अलग से दायर की गई 5 रिट-पिटीशन भी थीं। इनमें दावा किया गया कि तीन तलाक अनकॉन्स्टिट्यूशनल है। क्या है भारत में तलाकशुदा मुस्लिम महिलाओं की स्थिति? - देश में मुस्लिमों की आबादी 17 करोड़ है। इनमें करीब आधी यानी 8.3 करोड़ महिलाएं हैं। - 2011 के सेंसस पर एनजीओ 'इंडियास्पेंड' के एनालिसिस के मुताबिक, भारत में अगर एक मुस्लिम तलाकशुदा पुरुष है तो तलाकशुदा मुस्लिम महिलाओं की संख्या 4 है। भारत में तलाकशुदा महिलाओं में 68% हिंदू और 23.3% मुस्लिम हैं। मामले में पक्ष कौन-कौन हैं? केंद्र: इस मुद्दे को मुस्लिम महिलाओं के ह्यूमन राइट्स से जुड़ा मुद्दा बताता है। ट्रिपल तलाक का सख्त विरोध करता है। पर्सनल लॉ बाेर्ड: इसे शरीयत के मुताबिक बताते हुए कहता है कि मजहबी मामलों से अदालतों को दूर रहना चाहिए। जमीयत-ए-इस्लामी हिंद: ये भी मजहबी मामलों में सरकार और कोर्ट की दखलन्दाजी का विरोध करता है। यानी मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के साथ खड़ा है। मुस्लिम स्कॉलर्स: इनका कहना है कि कुरान में एक बार में तीन तलाक कहने का जिक्र नहीं है। बेंच में हर धर्म के जज थे - बेंच में चीफ जस्टिस जेएस खेहर, जस्टिस कुरियन जोसेफ, जस्टिस आरएफ नरीमन, जस्टिस यूयू ललित और जस्टिस अब्दुल नजीर शामिल थे। इस बेंच की खासियत यह थी कि इसमें हिंदू, मुस्लिम, सिख, ईसाई और पारसी धर्म को मानने वाले जज शामिल थे।


Create Account



Log In Your Account