जैविक खेती कृषि की वह विधि है जो भूमि की उर्वरा शक्ति को बनाए रखने के लिए फसल चक्र, हरी खाद, कंपोस्ट आदि का प्रयोग किया जाता है। 1990 के बाद जैविक खेती का बाजार बढा है। जैविक खेती एक ऐसी पद्धति है जिसमें रासायनिक उर्वरकों, कीटनाशकों तथा खरपतवारनाशी के स्थान पर जीवांश खाद पोषक तत्व (गोबर की खाद कंपोस्ट, हरी खाद, जीवाणु कल्चर, जैविक खाद ,आदि) जैव नाशियों (बायोपेस्टिसाइड्स) बायो एजेंट जैसे क्राइसोपा आदि का प्रयोग किया जाता है। इसमें न केवल भूमि की उर्वरा शक्ति लंबे समय तक बनी रहती है, बल्कि जहर रहित पोस्टिक उत्पाद उत्पादित होता है।
मृदा, पर्यावरण और मानव स्वास्थ्य को सशक्त बनाए रखने के लिए जैविक खेती नितांत
पृथ्वी पर जैव विविधता अपने आप में अनुपम उपहार है। यह उपहार सभी के लिए समान अधिकार, कर्तव्य, आजीविका और एक दूसरे की रक्षा के लिए है। वातावरण जितना स्वस्थ रहेगा हमारी जलवायु उतनी ही स्वस्थ होगी। पर्यावरण से छेड़छाड़ के कारण जलवायु में परिवर्तन हो रहा है। जिसका असर दैनिक कार्यकलापों पर भी लगातार दिख रहा है। आने वाली पीढ़ियों को सुरक्षित रखने के लिए मिट्टी, जल, वायु को प्रदूषण मुक्त रखना आवश्यक है। इसको लेकर सभी प्रकार के वृक्षों एवं जीवों को संरक्षित रखना होगा। इसी को ध्यान में रखते हुए मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने जल-जीवन-हरियाली अभियान की शुरुआत की। जल और हरियाली है
कोविड-19 ने मनुष्य को अंतरात्मा की आवाज सुनने पर मजबूर कर दिया है। यह बदलाव मनुष्य को अपनी प्रतिबद्धता सुनिश्चित करने के लिए प्रेरित कर रहा है। इस नए बदलाव से सांस्कृतिक, सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक क्षेत्र में बदलाव देखने को मिल रहा है। यह बदलाव सबसे ज्यादा उन प्रदेशों में दिखेगा जहां मूलभूत ढांचा, शिक्षा, स्वास्थ्य और रोजगार का अभाव है, जिसके कारण मजबूरन पलायन करना पड़ता है। ऐसा ही एक प्रदेश बिहार है, जहां पलायन एक संस्कृति बन गई है। उसके घर वाले, गांव वाले और खुद भी मानसिक तौर पर इसकी तैयारी बचपन से ही कर लेते हैं। जब 1991, में नई
28 जून 2019 को विधानसभा सचिवालय के नवनियुक्त कर्मियों को नियुक्ति पत्र वितरण के दौरान मेरे मन में विचार आया कि विधानमंडल के सभी सदस्यों को जलवायु परिवर्तन के कारण सूखे का खतरा, बाढ़ की आशंका, भू-जल स्तर में गिरावट, ग्लोबल वार्मिंग के दुष्प्रभाव के बारे में जानकारी उपलब्ध करायी जाए तथा इस संबंध में उनके अनुभवों को साझा किया जाएताकि जनप्रतिनिधि भी अपने-अपने क्षेत्रों में पर्यावरण के प्रति लोगों को जागरुक करेंगे, उनसे पर्यावरण संबंधी बातों की चर्चा करेंगे तो उनमें चेतना आएगी। इसको लेकर 13 जुलाई को “राज्य में जलवायु परिवर्तन से उत्पन्न आपदाजनक स्थिति पर विमर्श” विषय पर विधानमंडल के सेंट्रल हॉल में इसका आयोजन
बिहार विकास की पटरी पर दौड़ रहा है। इस बात से सभी इत्तेफाक रखते हैं। जिस बिहार ने जंगलराज से लेकर नरसंहार तक की काली तस्वीरों को देखा है आज उस बिहार का नक्शा पूरी तरह से बदला हुआ नजर आ रहा है। इस बदलते बिहार की तस्वीर के लिए एनडीए अपनी पीठ थपथपाती रही है। बात में दम भी है, जो काम करेगा उसका नाम तो होगा ही। इस सूबे की सत्ता के शीर्ष पर बैठे मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने कई नए प्रयोग कर बिहार के विकास में खुद को मिल का पत्थर साबित करने में कामयाब रहे हैं। इस कामयाबी में जदयू और भाजपा दोनों
बिलखती आंखों की यही पुकार, मेरे बच्चे को बचा लो सरकार
मेरे बच्चे को बचा लो साहब...देखो न कैसे-कैसे कर रहा है...हम गरीब हैं...हमारे आप ही सबकुछ हैं...आप सुनते क्यों नहीं....और दारुण आवाज के साथ क्रंदन करती मां अस्पताल के दहलीज पर अपने माथे को पटकती रह जाती है...मगर किसी के कानों पर जूं तक नहीं रेंगती। कुछ पल जैसे ही गुजरा
अखिल भारतीय शिक्षा अधिकार मंच ने आगामी 18 फरवरी 2019 को सबको समान शिक्षा के लिए ‘हुंकार रैली’ का आह्वान किया है. इसके लिए शिक्षाविदों और सामाजिक कार्यकर्ताओं ने आंदोलन की कार्ययोजना बनायी है.
इसमें देशभर के शिक्षा, शिक्षक और छात्र संगठन शामिल हो रहे हैं. इस आंदोलन की भूमिका में इलाहाबाद हाइकोर्ट का फैसला और शिक्षा के निजीकरण का विरोध है. इसके लिए लगातार प्रत्येक राज्य में अभियान चल रहा है.
इलाहाबाद हाइकोर्ट ने अगस्त 2015 में ऐतिहासिक फैसला देते हुए निर्देश दिया था कि सरकार सुनिश्चित करे कि राजकीय खजाने या सार्वजनिक निधियों से किसी तरह की अतिरिक्त आमदनी, लाभ या वेतन पानेवाले सरकारी
ये पंक्तियां लिखते वक्त मेरे दिलो-दिमाग पर मुजफ्फरपुर और देवरिया की अबोध बालिकाओं की आहें-कराहें दस्तक दे रही हैं। जो लोग तीन दिन बाद आजादी का जश्न मनाने के लिए बेताब बैठे हैं, वे एक पल रुककर सोचते क्यों नहीं कि गुजरे सात दशकों में हमने हिन्दुस्तान के बचपन और तरुणाई को क्या दिया है? हमें यह विचार भी करना चाहिए कि ‘आज के बच्चे कल के नागरिक’ जैसे भावुक नारों का ऐसा दर्दनाक हश्र क्यों हुआ?
एक हिन्दुस्तानी होने के नाते जब पीछे पलटकर देखता हूं, तो पाता हूं कि देश में तरक्की के नाम पर आधुनिक संयंत्र आए, सड़कें बनीं और सिर के ऊपर से बेशुमार हवाई जहाज उड़ने
15 वें वित्त आयोग का गठन नवंबर, 2017 में हुआ एवं आयोग द्वारा दिसंबर, 2017 में राज्यों को पत्र भेज कर विचारणीय विषय जिस पर आयोग की सिफारिशें आधारित होंगी, पर राज्यों की राय एवं विशिष्ट सुझावों की मांग की गई। इस पत्र के आलोक में राज्य के स्तर से बिहार से संबंधित महत्वपूर्ण बिन्दुओं पर प्रारंभिक सुझाव फरवरी, 2018 में भेजे गये है। इस संदर्भ में कुछ महत्वपूर्ण मुद्दों पर मैं अपने विचार रखना चाहूँगा।
ऐतिहासिक रूप से पक्षपातपूर्ण
चीन की साम्यवादी पार्टी ने यह प्रस्ताव पेश किया है कि अब वहां राष्ट्रपति तथा उपराष्ट्रपति के पद पर आसीन व्यक्ति के लिए मात्र दो पांचसाला कार्यकाल की सीमा रखने की जरूरत नहीं है. इसका मतलब साफ है- 2023 के बाद भी अपने पद पर शी जिनपिंग बेखटके बने रह सकते हैं.
कुछ विश्लेषकों का मानना है कि शी ने अपना पहला ही कार्यकाल पूरा नहीं किया, वह इस बात का पुख्ता इंतेजाम कर रहे हैं कि उनके जीवनकाल में उनको चुनौती दे सकनेवाला कोई ‘उत्तराधिकारी’ प्रकट न हो सके.
अमेरिकी पत्र-पत्रिकाओं में इसे 'सम्राट शी’ की ताजपोशी कहा जाना शुरू हो गया है. कुछ ही दिन पहले पार्टी के अधिवेशन में
गुजरात चुनाव में भारतीय जनता पार्टी की जीत प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सुशासन की उपलब्धि है. भारतीय जनता पार्टी ने 1950 से अपनी यात्रा आरंभ करके आज तमाम राज्यों सहित केंद्र में भी अपना स्थान बनाया है.
पार्टी की व्यवस्थित सदस्यता, कुशल संगठनात्मक शक्ति और पार्टी के विषयों को नीचे तक पहुंचाने का कार्य पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह जी ने किया है. गुजरात में भारतीय जनता पार्टी ने बाईस वर्षों के शासनकाल में समाज के विभिन्न पक्षों को छुआ है. गुजरात एक ऐसा राज्य है, जिसकी विकास दर दस प्रतिशत रही है.
अब जिस राज्य की विकास दर दस प्रतिशत रही हो, वहां विकास विरोधी रुख अपनाना गुजरात में