सिर्फ एक मजबूत नेता को लाने से स्थिति नहीं बदल सकती, और मुङो ऐसा नहीं लगता कि ली ने इसे पूरी तरह से समझा होगा, जब वे अकसर आश्चर्य व्यक्त करते थे कि उनकी महान सफलताएं भारत जैसे देशों में क्यों दुहरायी नहीं जा सकीं. सिंगापुर के महान नेता ली कुआन यू की मृत्यु पर उनके प्रति श्रद्धांजलि व्यक्त करते हुए कूटनीतिज्ञ हेनरी किसिंजर ने उनकी आर्थिक उपलब्धियों को रेखांकित किया- ‘ली और इनके सहयोगियों ने अपने लोगों की प्रतिव्यक्ति आय, जो आजादी के बाद 1965 में 500 डॉलर थी, को वर्तमान में करीब 55,000 डॉलर तक पहुंचा दिया. एक पीढ़ी की अवधि में ही सिंगापुर एक अंतरराष्ट्रीय वित्तीय केंद्र,
नये विक्रम संवत् का चैत्य महीना अर्थात सौर-चक्र द्वारा भारतीयों को प्रदत्त एक चेतना का मास. एक पवित्र महीना. वह महीना जिसमें भगवान श्रीराम का जन्म हुआ. देवताओं के गुरु भगवान विष्णु ने इसी महीने में पाताल में खोये वेदों को ढूंढ़ कर भविष्य के प्रकाश-पुंज के लिए संचित कर दिया था. सचमुच, सभी महीनों से अलग यह एक ऐसा महीना है, जिसमें प्रकृति चारों ओर एक सौगात के रूप में नयी छटा, नया रोमांच और उत्साह बिखेर देती है. इस सौगात को हम भूले नहीं हैं. पुरखों द्वारा सौंपी गयी इस थाती को कश्मीर से कन्याकुमारी तक किसी न किसी रूप में पर्व-त्योहारों के माध्यम से संजोये हुए हैं. उत्तर
भारतीय राजनीति में धूमकेतु की तरह चमकी आम आदमी पार्टी दिल्ली में विशाल बहुमत से सत्ता में वापसी करने के एक महीने के भीतर ही आंतरिक कलह की चपेट में है. महीने भर पहले की चुनावी जीत के बाद बड़ी राजनीतिक शक्ति बनने की इसकी संभावनाएं अब इसके अस्तित्व को लेकर आशंकाओं में बदलती प्रतीत हो रही हैं. हालांकि पहले भी पार्टी में ऐसे विवाद होते रहे हैं, लेकिन इस बार न सिर्फ मामला गंभीर है, बल्कि स्टिंग टेपों के सिलसिले ने इसमें बाहरी आयाम भी जोड़ दिये हैं. प्रस्तुत है कलह की पृष्ठभूमि और जानकारों की राय ... * 2012 राजनीति बदलने के दावे के साथ शुरुआत भारतीय संविधान की
गांव-टोले के सारे नकारा शोहदे होली के बादशाह होते थे. कभी किसी दिन भी जो ड्योढ़ी पर आने की हिम्मत नहीं करते थे, उनका होली में ड्योढ़ी पर इंतजार होता था. ड्योढ़ी पर बिंदास पहुंच जाने का उनके लिए यह मौका होता था. कोई यह मौका चूके क्यों! देर रात में होली के हुलियारे बड़े दरवाजों पर होली गाने पहुंचते थे. ये हुलियारे जरूर गुलाल वगैरह लगाये रहते थे और ताड़ी वगैरह भी मना कहां थी! होली आ गयी है. आयेगी ही, क्योंकि अब तक उसका आना सलामत है. हर नये कैलेंडर के साथ यह हर साल आती है. लेकिन अब वे रास्ते किसे पता हैं, जिनसे चल कर
नयी दिल्ली : वैकल्पिक राजनीति की स्थापना के संकल्प के साथ करीब दो साल पहले अस्तित्व में आयी आम आदमी पार्टी बिखराव के कगार पर खड़ी दिख रही है. पार्टी का शीर्ष नेतृत्व दो विरोधी गुटों में बंट चुका है. एक ओर राष्ट्रीय संयोजक और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के समर्थक नेता हैं, तो दूसरी ओर योगेंद्र यादव तथा प्रशांत भूषण खड़े हैं. दिल्ली चुनाव में भारी जीत हासिल कर पार्टी के सत्ता में आने के तीन सप्ताह के भीतर ही आंतरिक कलह का इस हद तक बढ़ जाना अचंभित तो जरूर करता है, लेकिन पिछले कई महीनों के घटनाक्रम के मद्देनजर कहा जा सकता है कि यह अप्रत्याशित कतई
देश में रेलवे का महा-विस्तार संभव है और इसकी मदद से बड़ी तादाद में नये रोजगार तैयार होंगे. इसका विस्तार दूसरे कारोबारों के विकास के लिए एक बुनियादी जरूरत है. लेकिन, हमें तय करना है कि हमारी प्राथमिकता में ‘बुलेट ट्रेन’ को होना भी चाहिए या नहीं. शेयर बाजार से खबरें हैं कि दो दिनों से रेलवे से जुड़ी कंपनियों के शेयरों में उछाला दिख रहा है. ऐसी क्या खुशखबरी हो सकती है, जिसे लेकर शेयर बाजार खुश है? क्या निजी क्षेत्र की भागीदारी बढ़नेवाली है? क्या रेलमंत्री सामान्य यात्री सुविधाएं बढ़ा सकते हैं? तमाम खामियों के बावजूद हमारी रेल गरीबों की सवारी है. सिर्फ इसके सहारे वह अपनी गठरी
उद्योग जगत और बाजार को बजट से अनेक अपेक्षाएं हैं. आर्थिक सुधारों को तेज करने, देश के मैन्यूफैक्चरिंग क्षेत्र को बढ़ाने और निवेश में वृद्धि के सरकार के वादों और इरादों की प्रस्तुति बजट में हो सकती है. सरकार के सामने अर्थव्यवस्था का सुदृढ़ीकरण करने, रोजगार बढ़ाने और व्यापार घाटा कम करने की चुनौतियां हैं. सरकार द्वारा अब तक उठाये गये कदमों और संभावित तथा वांछित पहलों पर जानकारों की राय के साथ एक परिचर्चा प्रस्तुत है आज के विशेष में.. बाजार और आर्थिक व्यवस्था का बजट से कोई संबंध नहीं है. बाजार की उथल-पुथल का बजट से खास रिश्ता नहीं है. बाजार विदेशी पैसे की बदौलत ऊंचा होता है और
दिल्ली में आम आदमी पार्टी (आप) की सरकार ने अपना कार्यभार संभाल लिया है। इस बार परिस्थितियां काफी कुछ \'आप\' के पक्ष में हैं। देखना है, दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल इसका फायदा उठा पाते हैं या नहीं। एक तो उनके पास पर्याप्त सीटें हैं। दूसरा, पिछले बार की तरह वह सत्ता और विपक्ष, दोनों के निशाने पर नहीं हैं। पिछले साल उन्हें दोहरी लड़ाई लड़नी पड़ी थी। एक तो सत्तारूढ़ कांग्रेस के खिलाफ, दूसरी बीजेपी के खिलाफ। फिर \'आप\' को लेकर संदेह का वातावरण भी बना हुआ था। तमाम विपक्षी दलों और जनता के एक बड़े हिस्से में कई तरह की आशंकाएं थीं। लेकिन इस बार उन्हें व्यापक स्वीकृति
एकदिवसीय विश्व कप के लिहाज से देखें, तो इस समय भारतीय टीम वर्ल्ड चैंपियन है और इस बार उसका मुकाबला अपने ताज को बचाने के लिए है। भारतीय क्रिकेट टीम दो बार विश्व-विजेता बन चुकी है: 1983 में इंग्लैंड में लॉर्डस के मैदान और 2011 में घरेलू मैदान पर। अगर भारतीय टीम इस बार भी शानदार प्रदर्शन कर विश्व कप जीतती है, तो वह तीन बार की विश्व-विजेता बन जाएगी और ऑस्ट्रेलियाई टीम से महज एक कदम पीछे होगी। भारतीय होने के नाते सबकी तरह मैं भी यही चाहता हूं कि इस वर्ल्ड कप के फाइनल में महेंद्र सिंह धौनी के धुरंधरों को खेलता और जीतता हुआ देखूं। लेकिन इस
इस बार कप्तानी धौनी के हाथ में है. हो सकता है कि धौनी का यह अंतिम वर्ल्ड कप हो, इसलिए धौनी को कप जीतने में बड़ी भूमिका अदा करनी होगी. धौनी के पास योग्यता है. अनुभव है. इसे जमीन पर उतारना होगा. क्रिकेट वर्ल्ड कप की उलटी गिनती आरंभ हो गयी है. अभ्यास मैच चल रहे हैं. पूरी दुनिया की टीमें इस वर्ल्ड कप पर कब्जा करने के लिए पसीना बहा रही हैं. लेकिन, भारत है कि चेतता ही नहीं. हम (टीम इंडिया) वर्ल्ड चैंपियन हैं. इसलिए इस खिताब को बचाने की जिम्मेवारी हमारे ऊपर बाकी टीमों से ज्यादा है. क्रिकेट की दुनिया में अफगानिस्तानी क्रिकेट टीम की कोई पहचान
एक नवजात राजनीतिक पार्टी \'आप\' और उसके संयोजक अरविंद केजरीवाल से दिल्ली विधानसभा चुनाव में भाजपा और कांग्रेस की ऐसी बुरी हार कैसे हुई? क्या आप की जीत के साथ वोट बैंक, ध्रुवीकरण, जोड़-तोड़, अलगाव-असहिष्णुता, सांप्रदायिकता, जाति, धर्म, वर्ग, संप्रदाय और लैंगिक राजनीति से भिन्न राजनीतिक क्षितिज पर एक नई राजनीति का उदय हो रहा है? दिल्ली के मतदाताओं ने जाट आधारित भारालोद और सिख आधारित अकाली दल को एक प्रतिशत वोट भी नहीं दिया। दिल्ली की उच्च आय वाली दस सीटों में से दस, मध्य आय वर्ग की 28 सीटों में से 26 और निम्न आय वर्ग की 32 में से 31 सीट आप को मिली है। सही अर्थों में