भारत को मैं पसंद करता हूं', चीन लौटने का कोई औचित्य नहीं : दलाई लामा

रिपोर्ट: इन्द्रमोहन पाण्डेय

भारत-चीन सीमा पर तवांग विवाद देश ही नही पूरी दुनिया में चर्चा का विषय बना हुआ है। चीन से तनाव को लेकर संसद के दोनों सदनों में भी जबरदस्त हंगामा हुआ है। इस बीच तिब्‍बती धर्म गुरु दलाई लामा का बयान सामने आया है।

दलाई लामा ने तवांग गतिरोध के मद्देनजर कहा, 'चीन लौटने का कोई औचित्य नहीं है। मैं भारत को पसंद करता हूं। कांगड़ा पंडित नेहरू की पसंद है, यह जगह मेरा स्थायी निवास है।' उन्होंने यह बात हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा में कही है।"चीजें सुधर रही हैं। यूरोप, अफ्रीका और एशिया में चीन अधिक लचीला है। लेकिन चीन लौटने का कोई मतलब नहीं है। मैं भारत को पसंद करता हूं। 

रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने सदन को यह बताया था कि झड़प में किसी सैनिक को गंभीर चोट नहीं आई है। कुछ सैनिक मामूली रूप से घायल हुए हैं जिनका इलाज चल रहा है।

गौरतलब है कि मार्च 1959 में दलाई लामा चीनी सेना से बचकर भारत में दाखिल हुए थे. वो सबसे पहले अरुणाचल प्रदेश के तवांग और फिर 18 अप्रैल को असम के तेजपुर पहुंचे. 1962 युद्ध का एक बड़ा कारण इसको भी माना जाता है. चीन का कहना था कि दलाई लामा को शरण न दी जाए. लेकिन भारत ने उनको शरण दी थी. शांति का नोबल हासिल करने वाला दलाई लामा आज भी अरुणाचल प्रदेश और तवांग को भारत का हिस्सा बताते हैं मगर चीन इसे दक्षिणी तिब्बत करार देता है. इस वजह से चीन दलाई लामा को एक अलगाववादी नेता मानता है. वो कहता है कि दलाई लामा भारत और चीन की शांति के लिए सबसे बड़ा खतरा हैं.

9 दिसंबर को तवांग के यांग्त्से क्षेत्र में चीनी सैनिकों की ओर से एलएसी पर अतिक्रमण कर यथास्थिति को एकतरफा बदलने की कोशिश की गई। इस बीच भारतीय सेना ने चीनी सैनिकों का डटकर मुकाबला किया और उन्हें अपनी पोस्ट पर जाने के लिए  मजबूर कर दिया। दोनों सेनाओं के बीच हुई इस झड़प में दोनों देशों के सैनिक घायल हुए हैं।

 

 


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