दुनिया के सबसे तेज (आवाज की गति से तीनगुनी रफ्तार) और मारक प्रक्षेपास्त्र 'ब्रह्मोस' (वजन 2.5 टन) को वायुसेना के सुखोई 30 युद्धक विमान द्वारा सफल परीक्षण अद्भुत विश्व कीर्तिमान ही नहीं बना गया, बल्कि भारत की सैन्य शक्ति का भी जबरदस्त जलवा जमा गया. 

जो सफलता चीन और अमेरिका की वायुसेना को नहीं मिली, वह भारतीय वायुसेना के जांबाज वायु-वीरों ने हासिल कर दिखायी. यह अवसर और भी गौरवशाली हो जाता है, जब हम अंतरराष्ट्रीय न्यायालय (आइसीजे) में 71 वर्ष के 'ब्रिटिश राज' का अंत कर भारत के जस्टिस दलवीर भंडारी की विजय को देखते हैं. एक ही सप्ताह में दो विश्व-कीर्तिमान भारतीय शक्ति-यात्रा के दो महत्वपूर्ण सोपान कहे

-प्रेम कुमार- बाढ़ ने भले ही देश में डेढ़ करोड़ से ज्यादा लोगों को अपनी चपेट में ले लिया हो या रेडक्रॉस ने भारत, नेपाल और बांग्लादेश में आयी बाढ़ को दक्षिण एशिया में गंभीर मानव संकट करार दिया हो, लेकिन भारत की राजनीति इस बाढ़ से सूखी है. ऐसा लगता है कि देश की राजनीति को कोई फर्क नहीं पड़ता कि अकेले बिहार में 1 करोड़ से ज्यादा लोग, तकरीबन पूरा असम और पूर्वी उत्तर प्रदेश बाढ़ की त्रासदी झेल रहा है. नेता उन कार्यक्रमों में व्यस्त हैं जो उनके राजनीतिक भविष्य को सुखाड़ से बचा सकें. इस क्रम में वे एक-दूसरे की आलोचनाओं की बाढ़ को राजनीति में

जब एक अफवाह लोगों की जान लेने लगे, तो मान लेना चाहिए कि अब पानी सर से ऊपर बह रहा है और समय आ गया है कि केंद्र और राज्य सरकारें इसमें हस्तक्षेप करें, इसके खिलाफ जागरूकता अभियान चलायें. ऐसा कहा जाता है कि अफवाहों के पंख होते हैं, ये उड़ती हैं. इनकी गति इतनी तेज है कि एक राज्य से दूसरे राज्य की सीमाओं को लांघते इन्हें समय नहीं लगता. महज दो महीने पहले एक अफवाह राजस्थान से उड़ी थी कि कोई महिलाओं की चोटी काट रहा है. इस अफवाह ने अब हरियाणा, दिल्ली, उत्तर प्रदेश, मध्यप्रदेश, बिहार और झारखंड को अपनी चपेट में ले लिया है. अब तो

स्वतंत्रता दिवस पर रेडियो गाना बजा रहा था- ‘आओ बच्चों तुम्हें दिखायें झांकी हिंदुस्तान की...’ मेरा मन बार-बार गोरखपुर के उन बच्चों की तरफ जा रहा था, जो हिंदुस्तान की झांकी देखे बिना ही विदा हो गये. बिना इस मिट्टी से तिलक किये, बस ऑक्सीजन की कमी से दम तोड़ गये. ...ये धरती है बलिदान की! मैं सोचने लगा. काश स्वास्थ्य के मुद्दे पर राजनीति होती! काश सरकारी अस्पतालों और स्वास्थ्य विभाग के सामने धरने प्रदर्शन होते! काश संसद और विधानसभाओं में स्वास्थ्य बजट और परियोजनाओं पर हंगामे होते! अगर ये सब होता तो गोरखपुर की ‘दुर्घटना’ न होती. गोरखपुर की त्रासदी पर बोला बहुत गया है, शायद उतना सोचा नहीं

आशुतोष चतुर्वेदी प्रधान संपादक प्रभात खबर पाकिस्तान एक बार फिर अनिश्चितता के दौर में है. सुप्रीम कोर्ट ने नवाज शरीफ को अयोग्य ठहरा दिया है. इसके बाद उन्हें प्रधानमंत्री के पद से इस्तीफा देना पड़ा. हालांकि पाकिस्तान में लोकतांत्रिक तरीके से चुनी सरकारों को बरखास्त किये जाने का इतिहास पुराना है. वहां अक्सर सेना प्रमुख तख्ता पलट करने के बाद नयी पार्टी गठित कर खुद पर लोकतांत्रिक मुलम्मा चढ़ा लेते हैं. लेकिन, इस बार मामला कुछ अलग है. इस बार न्यायपालिका के माध्यम से सरकार का तख्ता पलटा गया है. भारत के संदर्भ में देखें तो पड़ोसी मुल्क में राजनीतिक अस्थिरता उसके हित में नहीं है. पाकिस्तान में लोकतांत्रिक शाक्तियों का कमजोर हो

आकार पटेल कार्यकारी निदेशक, एमनेस्टी इंटरनेशनल इंडिया जिस तेजी से भाजपा एक के बाद एक राज्यों में अपनी पकड़ बनाती जा रही है, कांग्रेस डरी हुई और बेचैन दिख रही है. बिहार की सत्ता महागठबंधन के हाथ से निकल गयी, बावजूद इसके कि कांग्रेस को नीतीश कुमार के इस गठबंधन से बाहर आने की पहले से ही जानकारी थी, जैसा कि राहुल गांधी कह रहे हैं. अगर वे इस बात को जानते थे, तो असहाय क्यों थे? इसे समझना मुश्किल है. गोवा में भी ऐसा ही हुआ था और वहां चुनाव में अच्छा प्रदर्शन करने और ज्यादा सीटें जीतने के बावजूद कांग्रेस ने इंतजार किया था. और भाजपा जैसी प्रतिभा-संपन्न, ऊर्जावान और

उड़ी में सेना के कैंप पर हुआ आतंकवादी हमला दिखाता है कि जम्मू-कश्मीर में पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद का खतरा ज्यों का त्यों बरकरार है। सवाल उठता है कि आतंकवादी कैसे सेना के कैंप में घुस गए और इतनी बड़ी क्षति पहुंचाने में सफल रहे। बहरहाल कूटनीति के केंद्र में इस हमले का समय होना चाहिए। जुलाई में हिजबुल मुजाहिदीन आतंकी बुरहान वानी की मौत के बाद राज्य में हालात तनावपूर्ण बने हुए हैं। जाहिर है यह हमला अंतरराष्ट्रीय जगत का ध्यान खींचेगा और पाकिस्तान की यही कोशिश है। पाकिस्तान ने कश्मीर में अशांति को हमेशा से ही हवा दी है। वह कश्मीर घाटी में कथित रूप से मानवाधिकारों के उल्लंघन पर

गुजरात में दलित पिटाई को लेकर संसद में विपक्ष के हंगामे के बीच केंद्रीय गृहमंत्री राजनाथ सिंह बुधवार को सामने आए। लोकसभा में उन्होंने पूरे मामले की जानकारी सदन के समक्ष रखी। उन्होंने बताया कि दलित पिटाई मामले में अब तक क्या कार्रवाई की गई हैं। राजनाथ सिंह ने लोकसभा में बोलते हुए कहा कि 11 जुलाई 2016 को गुजरात के सोमनाथ जिले के उना में 7 दलितों की पिटाई हुई थी। इस मामले में 9 अभियुक्तों को गिरफ्तार किया गया है। पीएम मोदी खुद इस घटना से दुखी हैं। गृहमंत्री ने बताया कि इस मामले में अब तक कुल 4 अधिकारियों को सस्पेंड किया गया है। राज्य सरकार ने पीड़ित परिवारों

भारत में उच्च शिक्षा जड़ हो गयी है. उसमें से कुछ नया नहीं उपज रहा. अगर कुछ सफलता मिली भी है, तो वह पश्चिम के रास्ते चल कर मिली है. भारतीय चिंतन व मूल्य उसमें नहीं हैं. वरिष्ठ पत्रकार और राज्यसभा सांसद हरिवंश ने इस विषय में अपने विचार, राज्यसभा में (नवंबर-दिसंबर 2014) केंद्रीय विश्वविद्यालय संशोधन बिल के समय रखने के लिए तैयार किये थे. कम समय के कारण पूरी बातें नहीं रखी जा सकी थीं, यहां हम उन्हें पूरा प्रकाशित कर रहे हैं. राज्यसभा के माननीय उपसभापति के प्रति आभार. इस विषय पर बोलने का मौका देने के लिए. एक संशोधन प्रस्ताव के साथ इस बिल के समर्थन

पहले बारह महीनों में से दो महीने विदेश यात्र में इस आस में गुजारे गये कि विदेशी पूंजी के आसरे देश के इन्फ्रास्ट्रर को ठीक किया जा सकता है. उत्पादन करनेवाला देश बनाया जा सकता है. रोजगार पैदा किया जा सकता है. लेकिन हुआ क्या? राष्ट्रपति भवन के खुले परिसर में 26 मई, 2014 को नरेंद्र मोदी की अगुवाई में 45 सांसदों ने मंत्री पर की शपथ ली, लेकिन देश-दुनिया की नजरे सिर्फ मोदी पर ही टिकी. और साल भर बाद भी सिर्फ प्रधानमंत्री मोदी ही काम करते हुए नजर आ रहे हैं. पहले बरस ने देश को यह पाठ भी पढ़ाया कि चुनाव जीतने के लिए अगर पूरा सरकारी तंत्र

अब राहुल के लौटने के बाद भोथरी होती कांग्रेस में धार देने का सवाल सबसे बड़ा होगा. तो आखिरी सवाल यही है कि क्या सोनिया गांधी अब राहुल को अध्यक्ष पद पर बैठा कर कांग्रेस को अपने पारंपरिक वंशवाद के मद में चलने देगी? आजादी के बाद 67 बरस में से 33 बरस कांग्रेस के अध्यक्ष के तौर पर नेहरू गांधी परिवार ही रहा. नेहरू 1951 से 54 तक, तो इंदिरा गांधी 1959 के बाद 1978 से 1984 तक रहीं. और उसके बाद 1985 से 1991 तक राजीव गांधी. यानी जितना वक्त नेहरू, इंदिरा, राजीव ने अध्यक्ष बन कर गुजारा, उससे ज्यादा वक्त सोनिया अकेले अध्यक्ष के तौर पर बनी


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